
जाने-माने व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई (harishankar parsai) ने सैकड़ों राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य लिखे। harishankar parsai के लिखे व्यंग्यों में से 10 राजनीतिक और सामाजिक कोट्स पेश हैं :
1. मेरे आसपास ‘प्रजातंत्र’ बचाओ के नारे लग रहे हैं। इतने ज्यादा बचाने वाले खड़े हो गए हैं कि अब प्रजातंत्र का बचना मुश्किल दिखता है।
2. मंथन करके लक्ष्मी को निकालने के लिए दानवों को देवों का सहयोग अब नहीं चाहिए। पहले समुद्र- मंथन के वक्त तो उन्हें टेक्निक नहीं आती थी, इसलिए देवताओं का सहयोग लिया। अब वे टेक्निक सीख गए हैं।
3. गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिका है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलती हैं, जिनके पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है।
4. चीन से लड़ने के लिए हमें एक गैर-जिम्मेदारी और बेईमानी की राष्ट्रीय परम्परा की सख्त जरूरत है। चीन अपने पड़ोसी देशों से बेईमानी करता है, तो हमें देश के भीतर ही बेईमानी करने का अभ्यास करना पड़ेगा। तब हम उसका मुकाबला कर सकेंगे।
5. निंदा कुछ लोगों के लिए टॉनिक होती है। हमारी एक पड़ोसन वृद्धा बीमार थी। उठा नहीं जाता था। सहसा किसी ने आकर कहा कि पड़ोसी डॉक्टर साहब की लड़की किसी के साथ भाग गई। बस चाची उठी और दो-चार पड़ोसियों को यह बताने चल पड़ी।
6. अगर पौधे लगाने का शौक है तो उजाड़ू बकरे-बकरियों को कांजीहाउस में डालो। वरना तुम पौधे रोपोगे और ये चरते चले जाएंगे।
7. कुछ लोग खिजाब लगाते हैं। वे बड़े दयनीय होते हैं। बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढोंग रचते हैं।
8. जो लोग पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।
9. देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,लेकिन वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।
10. बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लें तो आधी इज्जत बच जाती है।
# harishankar parsai, # harishankar parsai satire
हरिशंकर परसाई, शरद जोशी के शानदार व्यंग्य पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं :