
By Jayjeet
इब्नबतूता की आत्मा ने भी इन दिनों खुद को घर में बंद कर रखा है। हालांकि आत्माओं को किसी भी वायरस का कोई खतरा नहीं होता, फिर भी लोगों के साथ एका दिखाने के लिए वह लॉकडाउन का पालन कर रही है। पर आत्माएं भी बोर तो हो ही जाती हैं। वह और किसी से तो मिल नहीं सकती, तो कल उसने अपनी बोरियत दूर करने के लिए उस यमदूत को ही अपनी छत पर रोक लिया जो ड्यूटी पर जा रहा था। उस यमदूत से आत्मा-ए-इब्नबतूता की पुरानी पहचान थी। इब्नबतूता की सिफारिश पर ही वह यमदूत के इंटरव्यू में पास हुआ था। ऊपर भी सिफारिशें काम करती हैं, परंतु केवल नेक आत्माओं की।
इब्नबतूता की आत्मा : किधर को यमदूत जी? बड़ी जल्दी में हो?
यमदूत : अरे बतूता जी, आप यहां क्या कर रहे हैं? आत्मा के रूप में ये क्या हाल बना रखा है?
इब्नबतूता : कुछ दिनों के लिए महाराज से अनुमति लेकर धरती पर बिचरने आया था। अब क्या मालूम था कि कोरोना के कारण यहीं फंस जाऊंगा।
यमदूत : पर आपको काहे का कोरोना का डर? चलना हो तो मेरे साथ चलो। बस दो-तीन आत्माओं को उठाना है। फिर चलते हैं।
इब्नबतूता : चलना तो मैं भी चाहता हूं, पर मेरी आत्मा गवाह नहीं देती। इस संकट में मैं यहां से छोड़कर जाऊं, यह भी ठीक नहीं। अभी तो सरकार ने भी कहा है कि घर पर रहो। तो यहीं छत पर घूम लेता हूं। पर मुझे यह देखकर बड़ा ताज्जुब व दुख होता है कि कई गैर-आत्माएं भी सड़कों पर घूम रही हैं, बगैर काम से, यूं ही। उनसे कुछ कहो तो उनका ओवर कॉन्फिडेंस देखो कि ये कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
यमदूत : बिल्कुल सही बोले। ये ओवर कॉन्फिडेंस नहीं, बल्कि लापरवाही है। अभी मैं जिसको लेने जा रहा हूं, वो भी इसी चक्कर में निकल लिया। रोज शाम हुई नहीं कि घर से बाहर, और बगैर किसी काम के। पुलिस ने उसे दो-चार बार ठोंका भी। पर नहीं माना। अभी उसकी आत्मा से मिलूंगा तो मैं भी उसे दो-चार टिकाऊंगा। खुद तो निपटा ही कमीना, 10-20 के निपटने की तैयारी अलग करवा दी।
इब्नबतूता : सही कहा, कुछ ऐसे ही डेढ़ स्याने लोगों के कारण पूरी दुनिया में परेशानी बढ़ गई है। आप लोगों का काम अलग बढ़ गया। अभी तो ओवरआइम कर रहे होंगे?
यमदूत : मेरी ड्यूटी हिंदुस्तान में लगी है और अभी ईश्वर का शुक्र है कि यहां अभी ज्यादा दबाव नहीं है। अमेरिका सेक्टर वाले लोगों पर ज्यादा लोड है। हिंदुस्तान में लोग डेढ़ स्याने हैं तो अमेरिका में तो वहां की सरकार डेढ़ स्यानी निकली।
इब्नबतूता : तुम तो जगह-जगह घूमते हो। क्या हालात हैं अभी?
यमदूत : देखो, कमी निकालनी चाहे तो लाख निकाल लो। पर अभी जो जितना योगदान दे रहा है, वह भी कम नहीं है। ईश्वर भी पूरी मदद कर रहा है। बीच में ईश्वर ने डॉक्टरों के लिए ‘देवदूत’ की उपाधि देनी बंद कर दी थी। पर पिछले एक महीने में कई डॉक्टरों ने खुद अपनी मेहनत से ‘देवदूत’ की उपाधि फिर से हासिल कर ली है। हम यमदूत कभी-कभार फुर्सत में मिलते हैं तो आपस में मजाक में कहते भी हैं कि कोरोना के कारण डॉक्टरों को प्रायश्चित करने का मौका मिल गया और उन्होंने पूरी ईमानदारी से ईश्वर द्वारा दिए गए इस मौके का सदुपयोग भी किया। बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि देवदूत की इस उपाधि के साथ ये डॉक्टर भविष्य में भी जनता-जनार्दन की ऐसी ही सेवा करते रहें। बॉस, सच कहूं तो सेवा में ही मेवा है। इस दुनिया में और कुछ नहीं रक्खा। सब देख दिया इतने सालों में।
इब्नबतूता : सही कहते हो। पर इनमें से अधिकांश डॉक्टर तो सरकारी हैं। प्राइवेट सेक्टर के डॉक्टरों के लिए कोई प्रायश्चित पैकेज नहीं है? उन्हें भी तो देवदूत की उपाधि मिलनी चाहिए।
यमदूत : महाराज, उपाधि हासिल करनी पड़ती है। कोरोना ने कई लोगों की आंखें खोली हैं। प्राइवेट डॉक्टर्स भी देवदूत की उपाधि हासिल करने के योग्य बनें, ऐसी उम्मीद ही कर सकते हैं। अच्छा, अब मैं चलता हूं, ऊपर डिलीवरी पहुंचाने का वक्त हो गया है।
(जयजीत ख़बरी व्यंग्यकार और ब्लॉग ‘हिंदी सटायर डॉट कॉम’ के संचालक हैं। )