
By Jayjeet
पिछली बार हमने पढ़ा था कि कैसे इब्नबतूता की आत्मा एक शादी से बगैर खाए ही बाहर आ गई। पर चूंकि भूख तो लग रही थी। तो वह सीधे चांदनी चौक चली गई। आत्माएं बहुत तेज चलती हैं, यह पाठकों को मालूम हो ही चुका है। तो कुछ ही मिनटों में वह चांदनी चौक की एक गली में थी। दुर्योग से वह एक पोहेवाले की दुकान पर चली गई। हां, इंदौरी टाइप का पोहा चांदनी चौक पर भी मिलता है। वह भखाभख पोहे भकोसने लगी। तभी उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी। वह उसे घूर रहा था। थोड़ी देर बाद ही उस आदमी ने अपने कलफदार कुर्ते की जेब से कुछ निकाला, दो-चार बटन दबाए और उसे कान से लगाकर फुसफुसाने लगा। आत्मा ने ज्यादा लोड नहीं लिया। पोहे खाने में मगन रही। इस बीच, उसे यह भी भान नहीं रहा कि दो बंदे आकर उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग करने लगे थे।
पोहे पर हाथ साफ कर आत्मा उस दुकान से आगे एक खुली सड़क पर आ गई। फुटपाथ के किनारे एक शो-रूम में टीवी चल रहा था। उस बोलते आइने में अपनी ही तस्वीर देखकर आत्मा अचानक चौंक गई – अरे, यह तो मेरी पोहे खाने वाली तस्वीर है। ये यहां कैसे आ गई? उसने सोचा। बोलते आईने में लिपे-पुते चेहरे वाली एक महिला चीख रही थी। लोगों ने जेबों से रुई निकालकर कानों में भर ली, मानो यह रुटीन का काम हो। अब वे बोलते आईने में आ रहीं बस लाइनें पढ़ रहे थे। तस्वीर के साथ लिखा आ रहा था- ब्रेकिंग न्यूज… पोहा खाते रंगे हाथ पकड़ा गया घुसपैठिया…। बीच-बीच में उसी आईने के भीतर से आईनों के फूटने की आवाजें भी आ रही थीं। बतूता की आत्मा को उस समय तक यह न मालूम था कि ब्रेकिंग न्यूज के समय ऐसे आईने फूटने जरूरी होते हैं।
शुक्र है, लोगों की नजर केवल ब्रेकिंग न्यूज पर थी, उस पर नहीं। तो आत्मा भी कोने में खड़े होकर अपनी ही खबर देखने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पोहे खाकर उसने क्या पाप कर डाला? तभी उसे याद आया कि हां, जल्दबाजी में उसने पैसे नहीं चुकाए थे। उसका दिमाग ठनका, अच्छा इसी वजह से यह खबर चल रही है। उसने तुरंत विचार किया कि वह अभी की अभी उस दुकानदार के पाकर जाकर उससे माफी मांग लेगी। वह यह नेक विचार कर ही रही थी कि उस दुकानदार का चेहरा नजर आया। वह कुछ बोल रहा था- ‘मुझे तो पहले से ही शक हो गया था कि दाढ़ीवाला यह आदमी कुछ गड़बड़ है। पोहे पर पोहे खाए जा रहा था। हां, हमारे यहां इंदौरी लोग भी पोहे खाने आते हैं, पर बड़े सलीके से खाते हैं – सेंव, प्याज,नींबू, जीरामन, सबकुछ मांगते हैं। दो-दो बार मांगते हैं। लेकिन वह बंदा तो बस पोहे पर टूट पड़ा।’
दुकानदार की वह पीड़ा भी सामने आ गई जिसे लेकर आत्मा भी आत्मग्लानि में थी – ‘और हां, पैसे भी ना चुकाए उसने। ऐसे ही भाग गया।’ उसके बाद वह जो बोला, उससे आत्मा की आत्मा अंदर तक सिहर उठी- ‘दिख तो जाए वह राष्ट्रद्रोही घुसपैठिया। गर्दन काटकर भारत माता के चरणों में अर्पित न कर दूं तो मेरा नाम नहीं।’ इसे सुन आत्मा ने डर के मारे दुकानदार के पास जाने का नेक विचार त्याग दिया। वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि न्यू इंडिया में कैमरे के सामने बकैती करने वालों की पूरी की पूरी फौज पैदा हो गई है- बोलने में शेर, करने में ढेर।
इस बीच, बोलते आईने के भीतर 5-7 लोग जमा हो गए थे और वे ‘चांदनी चौक पर पोहे खाते खतरनाक घुसपैठिए’ के प्रॉस एंड कॉन्स पर गर्मागर्म बहस कर रहे थे। पुते चेहरे वाली वह महिला और जोर-जोर चीखने लगी थी। बहस करने वाला पहला बंदा उससे भी तेज आवाज में चीख मार रहा था। हाथ-पैर भी पटक रहा था। दूसरा और दम लगाकर… बोलते आईने को देखने वालों ने एक्स्ट्रा रुई अपने कानों में ठूंस ली थी, बहुत ही सहज रूप से। पर आत्मा के लिए वे चीखें असहृय हो चली थीं। उसने वहां से हटने में ही भलाई समझी… आत्मा है तो क्या हुआ! उसके लिए भी बीपी नॉर्मल रखना जरूरी है।
(क्रमश : )
(जयजीत ख़बरी व्यंग्यकार और ब्लॉग ‘हिंदी सटायर डॉट कॉम’ के संचालक हैं। )