
By Jayjeet
इब्नबतूता की आत्मा आज बड़ी फुर्सत में बगीचे की बेंच पर बैठी हुई थी। गर्दन एकदम झुकी हुई। अब तक उसकी गर्दन केवल तीन मौकों पर ही झुकती आई थी – अल्लाह के दर पर, सुल्तानों के दरबार में और अपनी यात्राओं के संस्मरण लिखते समय। पर आज किसी अन्य वजह से गर्दन झुकी हुई थी। जी नहीं, शरम से नहीं। वह तो इतने दिनों में नए हिंदुस्तान की धरती पर विचरण करते-करते कब की तिरोहित हो चुकी थी। जिन्हें शर्मिंदा होना चाहिए, वे ही जब शान से गर्दन उठाए घूमते हैं तो भला आत्मा को शरमाने की क्या पड़ी!
दरअसल, गर्दन झुकाने के लिए अगर कोई जिम्मेदार था तो वह था स्मार्टफोन। आत्मा जब से धरती पर उतरी, तभी से देखते आ रही थी कि कैसे लोग इस डिब्बे के सामने बड़ी ही तल्लीनता के साथ सज्दा किए रहते हैं। आखिर उसमें ऐसा है क्या, यही जानने के लिए आत्मा ने भी कहीं से स्मार्टफोन जुगाड़ लिया था और सुबह से वह उसी में व्यस्त थी। उसने जल्दी ही इसका इस्तेमाल करना भी समझ लिया था। पर हिंदुस्तानियों की जिंदगी में इस छह इंची डिब्बे ने किस कदर गदर मचा रखी है, यह भी आत्मा को जल्दी ही समझ में आने वाला था।
तो जब स्मार्टफोन में घुसाए-घुसाए गर्दन थक गई तो उसने सिर ऊपर किया। यह संयोग ही था कि आज वैलेंटाइन डे था। आत्मा ने इधर-उधर गर्दन घुमाई। उसे बगीचे के हर पेड़ के नीचे दो-दो मुंडियां नजर आ रही थीं- एक लड़के की, दूसरी लड़की की। दोनों झुकी हुईं। आत्मा ने जिज्ञासावश एक जोड़े के थोड़ा नजदीक जाकर देखा कि आखिर ये मुंडी झुकाए कर क्या रहे हैं। उन दोनों के पास एक-एक वैसा ही डिब्बा था, जैसा कि आत्मा के पास था। वह थोड़ा और नजदीक आ गई, ताकि जोड़े की गतिविधियों को बिल्कुल ठीक-ठीक देख सके। उसने देखा कि लड़के ने अपने डिब्बे से पास बैठी लड़की के डिब्बे में गुलाब का फूल भेजा है। बदले में लड़की ने अपने डिब्बे को दो बार टच किया और गुलाब के दो फूल तुरंत पास बैठे लड़के के डिब्बे में हाजिर थे। बाद में कुछ चॉकलेट्स व दिल टाइप संकेतों का भी आदान-प्रदान हुआ। हैप्पी वैलेंटाइन्स डे, हैप्पी वैलेंटाइन्स डे टु यू टू… जैसी लाइनें भी इसी प्रोसेस में ट्रांसफर की गईं। हर पेड़ के नीचे लगभग यही दृश्य दोहराया जा रहा था।
जब बतूता की आत्मा कपल्स की झांका-झांकी से थक गई तो एक बेंच पर आकर बैठ गई। संयोग से बाजू में ही दो चिरयुवा लड़के भी बैठे हुए थे। गले में केसरिया दुपट्टा, ललाट पर लंबा-सा तिलक। आपस में बतियाते हुए। उन्हें बतियाते देखकर थोड़ा सुकून मिना। आत्मा का सुकून इस बात से और बढ़ गया कि पूरे बगीचे में ये दो ही ऐसे शख्स थे जिनके हाथ में स्मार्टफोन के बजाय कोई ढंग की चीज थी – लट्ठ। हालांकि लट्ठ हाथ में होने के बावजूद उनके चेहरों पर लट्ठ वाला कॉन्फिडेंस नजर नहीं आ रहा था। बड़े मायूस लग रहे थे। आत्मा ने एक को छेड़ा तो दर्द फट पड़ा- ‘अब क्या बताएं। हमें फूलों का आदान-प्रदान करने वाले 10 जोड़ों की सुताई करने का टारगेट दिया गया था। पर सुबह से दोपहर हो गई, एक भी जोड़े के हाथ में फूल नजर नहीं आ रहे। सब स्मार्टफोन से ही इधर से उधर सरकाए जा रहे हैं। अब किसी की सुताई करे भी तो कैसे? कोई मॉरल ग्राउंड तो हो!’
आत्मा के चेहरे पर अनगिनत सवाल गुलाटियां मार रहे थे। कुछ पूछे, उससे पहले ही उस धर्मात्मा टाइप युवा की जेब में रखे स्मार्टफोन पर ‘टिंग’ की आवाज हुई। शायद वाट्सएप नोटिफिकेशन था। युवा ने स्मार्टफोन निकाला तो स्क्रीन पर गुलाब का एक फूल नज़र आया। उसने भी इधर से दो फूल सरकाए और अपने लट्ठ को सहलाने लगा। उसके चेहरे पर अब तक किसी की भी सुताई न करने का गम और गहरा गया था।
आत्मा ने फिर इधर-उधर देखा। सभी मुंडियां अब भी झुकी हुई थीं। उसने तिरछी निगाह से अपने स्मार्टफोन को देखा और उसे पास ही लगे डस्टबिन के हवाले कर बगीचे से बाहर निकल गई।
(क्रमश : )
(जयजीत ख़बरी व्यंग्यकार और ब्लॉग ‘हिंदी सटायर डॉट कॉम’ के संचालक हैं।)