
भारत/देवलोक। यहां का एक भक्त अपनी कथित व्यस्तता और अपने भक्त होने पर संदेह के चलते गणेशजी की पूजा-अर्चना में नहीं जा पाता। उसके कुछ मित्रों द्वारा डराने पर कि इससे भगवान नाराज हो जाएंगे, उसने स्वयं गणेशजी को ई-मेल करके अपनी समस्या का समाधान पूछ लिया। उसने पूछा कि क्या जगह-जगह लगी आपकी मूर्ति को पूजना जरूरी है? तो भगवान ने तत्काल रिवर्ट भी कर दिया। इसकी कॉपी hindisatire.com के भी हाथ लगी है। पढ़ें :
प्रिय भक्त (?),
आपकी यह दुविधा जायज है कि 24 घंटे में आप क्या-क्या करें। आपको नौकरी भी करनी है, फेसबुक और ट्वीटर पर भी काफी काम रहता है। टीवी देखना और मोबाइल गेम्स खेलना भी जरूरी है। मैंने अपनी ईश्वरीय शक्ति से पता लगवाया है कि तुम्हारे आसपास एक किलोमीटर के दायरे में 544 पांडाल हैं, जिनमें मेरी पीओपी और मिट्टी वगैरह की भव्य मूर्तियां लगी हुई हैं। ऐसे में जगह-जगह जाना प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं है।
मैं तुम्हें तीन कारणाें से किसी पांडाल में जाकर पूजा करने की अनिवार्यता से मुक्त करता हूं :
1. हर पांडाल में जोरदार लाउड स्पीकर लगे हुए हैं। तो तुम कहीं भी रहो, तुम्हें मेरे प्रिय भक्तों की आरती वगैरह की आवाज दूर से ही सुनाई देगी। अच्छा भी है कि तुम दूर से ही सुनो। मेरे तो बड़े-बड़े कान हैं तो मैं कान नीचे लटकाकर कान के परदे तक आने वाले शोर को कम कर लेता हूं।
2. तुम्हें ढेर सारी बीमारियां हैं। हर हिंदुस्तानी को है, यह अलग बात है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि उन्हें क्या-क्या बीमारियां हैं। तो तुम पांडालों में जाकर प्रसाद वगैरह खाओगे। प्रसाद है तो मना ही नहीं कर सकते, भले ही उसमें कुछ भी मिला हो। खैर, मैं तो भगवान हूं और इतना बड़ा पेट है कि कैसा भी मिलावटी भोग हो, सब हजम कर जाता हूं। तो इस बहाने मैं अगर अपने एक भक्त को और बीमार होने से बचाता हूं तो इस तरह मैं अपनी ईश्वरीय ड्यूटी ही कर रहा हूं।
3. तुम पूजा-आरती में आकर क्या करोगे? जोर-जाेर से …की जय …की जय … जैसे गगनचुंबी नारे ही लगाओगे और फिर प्रसाद के हाथ झाड़ते हुए घर आ जाओगे। फिर हथकंडों में लग जाआगे। तो क्याें समय बर्बाद कर रहे हो?
अंत में एक बात और कह दूं। पहले मैं सोचता था कि मैं चौबीसों घंटे हर पल, कण-कण में तुम लोगों के साथ रहूं। पर तुम लोगों ने ही मेरे दस दिन तय कर दिए। तुम लोगों को आपत्ति नहीं तो मुझे क्या!
तुम्हारा ही
भगवान गणेश