
हिंदी सटायर नॉलेज डेस्क। हर दिन मर्दों का होता है। ऐसा सारी दुनिया मानती है (हो सकता है हमारे यहां के मिडिल क्लास शादीशुदा पुरुष इस बात से सहमत नहीं हों)। इसीलिए एक दिन (8 मार्च) महिलाओं को दे दिया जाता है।
लेकिन हमारे यहां के शादीशुदा मिडिल क्लास मर्दों की तरह ही कई देशों के मर्दों का मानना था कि उनके लिए भी एक दिन होना चाहिए। तो शुरू हुआ इंटरनेशनल मेन्स डे (International Men’s Day)। आइए जानते हैं कि यह कब मनाया जाता है और एक्चुअल में इसका आइडिया आया कहां से था?
कब और कहां?
यह हर साल 19 नवंबर को करीब 70 देशों में सेलिब्रेट किया जाता है। इसमें अमेरिका, रूस, कनाडा, ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से लेकर त्रिनिडाड टोबेगो, बोस्निया और बुरुंडी जैसे गरीब देश भी शामिल हैं।
कहां से आया आइडिया?
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की मांग सबसे पहले 1960 के दशक में की गई। उस समय कुछ पुरुषों का कहना था कि विश्व महिला दिवस की तर्ज पर ही विश्व पुरुष दिवस मनाया जाना चाहिए। इसके सालों बाद अमेरिका स्थित मिसौरी यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी में सेंटर फॉर मेन्स स्टडीज के डायरेक्टर प्रोफेसर थॉमस ऑस्टर ने कोई ऐसा दिवस मनाने का सुझाव दिया जिसमें पुरुषों के मुद्दों पर बहस की जा सके। उन्होंने सबसे पहले 7 फरवरी 1992 को यह दिवस मनाया।
किसने की शुरुआत?
इसे संस्थागत रूप देने का श्रेय डॉ. जेरोम टीलकसिंग (Dr. Jerome Teelucksingh) को जाता है जिन्होंने 19 नवंबर 1999 के दिन त्रिनिदाद एंड टौबेगो में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की शुरुआत की। डॉ. जेरोम इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। 19 नवंबर की तारीख इसलिए चुनी गई, क्योंकि इसी दिन 1989 में त्रिनिदाद एंड टौबेगो की पुरुषों की फुटबॉल टीम ने पहली बार सॉसर वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई कर पूरे देश को एक कर दिया था।
विश्व पुरुष दिवस मनाने का क्या है मकसद?
इसकी ऑफिशियल वेबसाइट internationalmensday.com के अनुसार विश्व पुरुष दिवस मनाने के पीछे छह मकसद हैं :
1. पॉजिटिव मेल रोल मॉडल्स को प्रमोट करना।
2. समाज और परिवार में पुरुषों के पॉजिटिव कॉन्ट्रीब्यूशन को सेलिब्रेट करना।
3. पुरुषों की हेल्थ पर फोकस करना।
4. पुरुषों के साथ भेदभाव को हाईलाइट करना (जहां भी है)
5. जेंडर रिलेशन को इम्प्रूव करना।
6. सुरक्षित और बेहतर दुनिया का विकास करना जहां सब सभी लोग मिलकर एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ सकें।