
(क्योंकि राष्ट्रभक्ति केवल नारों से तय नहीं होती… )
By Jayjeet
चाइनीज एप्स पर बैन को लेकर हर जगह माहौल उतना ही खुशगवार है जितना मानसून के आगमन पर होता है। लेकिन क्या हम एप्स पर बैन करने मात्र से चीन को मात दे सकते हैं? और क्या इसे छोटी-सी शुरुआत भी मान सकते हैं?
माफ कीजिएगा। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो यह निरी मासूमियत है, क्योंकि ऐसा तो सरकार भी नहीं सोच रही। सरकार, भले ही वह मोदी सरकार भी क्यों न हो, को चलाने के लिए कई ब्रेन काम करते हैं और सभी जानते हैं कि ब्रेन कभी भी भावनाओं के वशीभूत नहीं होते। वे व्यावहारिक राजनीति और कूटनीति से ड्राइव होते हैं। इस कूटनीति और राजनीति को समझना हम जैसों के लिए इतना आसान नहीं है। इसलिए इस कठिन चीज को छोड़कर किसी सरल चीज पर बात करते हैं।
मुझे चीन से व्यक्तिगत तौर पर कोई प्रेम नहीं है। हममें से अधिकांश को नहीं है। पर हां, हममें से अधिकांश को चाइनीज सामान से आज भी बेपनाह मोहब्बत है। सबूत चाहिए? आज भी हमारे देश में जो मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बिक रहे हैं, उनमें 80 फीसदी से अधिक चाइनीज हैं। जितने समय में ( करीब 3 मिनट में) आप मेरी यह पोस्ट पढ़ेंगे, उतनी देर में हम 500 से अधिक चाइनीज फोन खरीद चुके होंगे। इकोनॉमिक टाइम्स के एक लेटेस्ट सर्वे की मानें तो चाइनीज फोन की ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों की बिक्री में धैले भर का भी फर्क नहीं पड़ा है, चीनी उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद।
और जो लोग चाइनीज स्मार्टफोन या गैजेट्स खरीद रहे हैं, वे कोई देशद्रोही नहीं हैं। क्योंकि इस पोस्ट को हममें से अधिकांश लोग चाइनीज गैजेट्स पर ही पढ़ रहे हैं और हम इस बहाने की आढ़ भी नहीं ले सकते कि अभी खरीद लिया, पर आगे से ना खरीदेंगे। सच तो यह है कि आगे भी हम चाइनीज फोन ही खरीदेंगे….दिवाली पर चाइनीज सीरीज ही खरीदेंगे… होली पर चाइनीज पिचकारियां ही खरीदेंगे…!!! बशर्ते….
बशर्ते … अगर हमारे हिंदुस्तानी मैन्युफैक्चरर अब भी ऊंचे दामों पर घटिया माल ही हमें बेचते रहे, अब भी अगर हमारे मैन्युफैक्चरर Value for Money का मंत्र ना समझ पाए…। क्योंकि लोहियाजी के शब्दों में कहें तो भले ही हम हिंदुस्तानी दुनिया की सबसे ढोंगी कौम हो, जो एप्स के बैन होने पर तालियां ठोंक सकती है, लेकिन इतनी मूर्ख भी नहीं है कि इंडियन मैन्युफैक्चरर्स कुछ भी बनाकर हमें कितने भी दामों पर टिकाते रहें…।
तो इसका रास्ता क्या है? ‘Boycott चाइनीज प्रोडक्ट्स’ तो बिल्कुल भी नहीं। यह नारा न हमारी मदद कर पाएगा, न हमारे देश की। यह नेगेटिव नेरेटिव है। इसके बजाय केवल एक ही नारा होना चाहिए – ‘Buy इंडियन प्रोडक्ट्स।’ इसमें कहीं नेगेटिव नेरेटिव नहीं है। यानी मेरे देश का मैन्युफैक्चरर चीन के नाम पर डराकर मुझे प्रोडक्ट नहीं बेच रहा, बल्कि वह मुझे प्रोडक्ट इसलिए बेचेगा क्योंकि उसका प्रोडक्ट Value for Money है। इस Value for Money को समझना जरूरी है क्योंकि यही चीनी सफलता का मंत्र है। चीन के प्रोडक्ट कोई बहुत महान नहीं होते, लेकिन वे पैसा वसूल होते हैं। अगर कोई चीनी गैजेट 10 हजार रुपए में मुझे जो कुछ दे रहा है, वह अगर मुझे ग्यारह हजार में भी मिलेगा तो मैं खरीद लूंगा, क्योंकि मैं इतना भी देशद्रोही नहीं हूं। लेकिन यह नहीं हो सकता कि उसके लिए मुझे 20 हजार खर्च करने पड़े। इतना राष्ट्रभक्त भी मैं नहीं हूं। और आप मानें या ना मानें, आप भी नहीं हैं, ग्लोबलाइजेशन के दौर में कोई नहीं है, कम से कम वह तो कतई नहीं है तो ईमानदारी से चार पैसे कमा रहा है। उसे चाहिए ही चाहिए – Value for Money…
रास्ता वही है जो जापानियों ने दिखाया है – 80 सालों में बगैर हल्ला-गुल्ला किए उसने मैन्युफैक्चरिंग के कई क्षेत्रो में उसी अमेरिका पर बढ़त हासिल की है, जिसने कभी उसके दो शहरों को नेस्तनाबूद कर दिया था। वहां के लोगों ने कभी बैन का हल्ला नहीं किया। हमारे पास भी यही रास्ता है, बैन नहीं क्योंकि नारे कभी टिकाऊ नहीं हो सकते।