
डॉक्टर दो तरह के होते हैं : एक, झोला झाप और दूसरा सूटकेस छाप।
झोला छाप डॉक्टरों का हाल ही में एक टीवी चैनल ने स्टिंग किया। जब टीवी चैनलों के पास कोई काम नहीं होता तो वे ऐसे ही स्टिंग करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर ऐसे स्टिंग से मुक्त होते हैं। वे दूसरों को स्टिंग देते हैं…
झोला छाप डॉक्टरों के पास डिग्रियां नहीं होतीं। इसलिए उनके पास डॉक्टरी का लाइसेंस भी नहीं होता। वे बगैर डिग्री के ही लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों के पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां होती हैं। ये डिग्रियां उनके लिए मूर्ख बनाने का डिफॉल्ट लाइसेंस होती हैं…। तो इन्हें प्रयास करने की जरूरत नहीं होती।
झोला छाप डॉक्टरों को कुछ पता नहीं होता। इसलिए ये ‘मन के गुलाम’ होते हैं। जो मन कहे, वही दवाइयां लिखते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों को सबकुछ पता होता है। इसीलिए ये ‘मनी के गुलाम’ होते हैं। इसलिए जो मनी कहती है, ये वही लिखते हैं- टेस्ट से लेकर दवाइयां तक…
झोला छाप डॉक्टर सेहत के लिए खतरनाक होते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर आर्थिक सेहत के लिए घातक होते हैं।
हमें न झोपा छाप डॉक्टर चाहिए। न सूटकेस छाप डॉक्टर।
(जैसा कि जॉली एलएलबी-2 में वकील बने अक्षय कहते हैं – हमें न कादरी जैसे टेररिस्ट चाहिए, न सत्यवीर जैसे करप्ट पुलिस अफसर…)
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तो कौन-से डॉक्टर चाहिए, महाराज? डॉक्टर पुराण बहुत हो गई…
हमें तो वही डॉक्टर चाहिए जो कभी देवलोक से आते थे, डैपुटेशन पर… भगवान के दूत के रूप में…
पर देवलोक ने डैपुटेशन पर डॉक्टर भिजवाने की व्यवस्था तो कब की बंद कर दी है…
अच्छा, इसीलिए तमाम सूटकेस छाप डॉक्टर डैपुटेशन वाले नहीं, डोनेशन वाले हैं…कुछ रिजर्वेशन वाले भी हैं शायद…
(By : Jayjeet)