
- प्रदीप चौबे
एक नवोदित कवि
माइक पर दो घंटे से
कविता पढ़ रहा था
दूसरे कवियों का हाजमा
बिगड़ रहा था
धैर्य का बांध जब टूट गया
तो पीछे बैठे एक कवि ने
कवि का कुर्ता खींचा
कुर्ता पुराना था
आधा हाथ में आ गया
कवि ताव खा गया
बोला – क्या! कुर्ता ही फाड़ दिया
अभी एक घंटा और पढूंगा!
वह फिर शुरू हो गया
पीछे बैठा दूसरा कवि बोला –
ये कुर्ते से नहीं मानेगा
इसका पाजामा भी खींचो!
कवि का मुंह आगे
और ध्यान पीछे था
उसने पाजामा स्कीम सुन ली
और पलटकर बोला –
खबरदार जो पाजामे को हाथ लगाया
एक तो उधार का है
पड़ोसी से मांगकर लाया हूं
और दूसरा,
सिर्फ यही पहनके आया हूं…